tag:blogger.com,1999:blog-7897185486341816911.post6391367718746677248..comments2011-11-20T08:02:44.869-08:00Comments on जिनेश जैन: पाटेबाजी से किसका भलाjinesh jainhttp://www.blogger.com/profile/16781640898277026462noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-7897185486341816911.post-88356016983174506102011-11-20T08:02:44.869-08:002011-11-20T08:02:44.869-08:00अद्भुत अभिव्यक्तिअद्भुत अभिव्यक्तिSANDEEP PANWARhttps://www.blogger.com/profile/06123246062111427832noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7897185486341816911.post-75738528252819255752011-09-26T01:55:31.024-07:002011-09-26T01:55:31.024-07:00AGAR SAHI ROOP SE JAANE TO SABKA BHALA BAKI APNI A...AGAR SAHI ROOP SE JAANE TO SABKA BHALA BAKI APNI APNI MARZI...... PATA TO PATA HAI JO AAJ BHI CIRY KI CULTURAL KA EK PART HAI SIR G... OR LOG AAJ BHI APNE APNE PAATO SE PREM KARTE HAI... JEENA MARNA SAB PAATO PAR HOTA HAI...AAJ BHI SIR G... PLEASE AAP MERE SAATH KABHI PAATO PAR CHALE PHIR MAI DIKHATA HU ESKA ORIGINAL ROOP... PLEASE I INVITE YOU FOR IT OR ESKE BAAD LIKHA EK ARTICLESHYAM NARAYAN RANGAhttps://www.blogger.com/profile/07699027212099887641noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7897185486341816911.post-83789482300731390252011-09-25T08:20:34.077-07:002011-09-25T08:20:34.077-07:00अब ये तो लोगों पर निर्भर करता है कि वे इस पाटा संस...अब ये तो लोगों पर निर्भर करता है कि वे इस पाटा संस्कृति को किस रूप में चालू रखते है|Gyan Darpanhttps://www.blogger.com/profile/01835516927366814316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7897185486341816911.post-44411739048040402552011-09-24T23:25:54.701-07:002011-09-24T23:25:54.701-07:00पाटों की वर्तमान स्थिति निश्चय ही निराशाजनक है। ज...पाटों की वर्तमान स्थिति निश्चय ही निराशाजनक है। जैसा कि आपने लिखा <br /><br />कॅरियर की दौड़ में शामिल युवा एक तरह से इन पाटों से बहुत दूर चला गया है,क्योंकि उन्हें लगता है कि पाटेबाजी उनका भविष्य संवार नहीं सकती है।<br /><br /><br />लेकिन इसके लिए केवल पाटे ही जिम्मेदार नहीं कहे जा सकते। मोबाइल, इंटरनेट और केबल ने भी जमकर कबाड़ा किया है। <br /><br />इससे युवाओं के पास सोशल गैदरिंग का समय घटा है। यही कारण है कि रांगड़ी चौक में हुई डाके की घटना का लोगों को पता नहीं चला। <br /><br />किसी जमाने में पाटों पर बैठने वाले लोगों से पाटे की शान होती थी, कोई एमए पास पाटा था तो कोई साहित्यकारों या ज्योतिषियों का। अब लोग ही हैं जो इस पाटे के स्तर को इतना नीचे तक ले आए हैं। हो सकता है भविष्य में कभी फिर पाटे का दिन लौटे... लेकिन आज की हकीकत यही है कि पाटे की उपयोगिता और सार्थकता खत्म सी हो गई लगती है।Astrologer Sidharthhttps://www.blogger.com/profile/04635473785714312107noreply@blogger.com