Wednesday, September 7, 2011

रेत के समन्‍दर में

पहली बार बीकानेर आया तो कमोबेश वैसा ही इस शहर को पाया, जैसा मैंने इसके बारे में सुना था। रेत का समंदर, पानी की कमी, खाने का संकट, लू के थेपडे़ और हाड़ कंपा देने वाली सर्दी से सामना। लेकिन जैसे जैसे दिन गुजर रहे हैं, मेरी ये धारणाएं अब सिरे से बदल रही हैं। यहां के लोग अपनी ही मस्‍ती में मस्‍त है। उनके लिए बाजार की चकाचौंध से ज्‍यादा अपनी सामाजिक गतिविधियां अहम हैं। परम्‍पराएं जिंदा हैं। कहीं कितना ही बदलाव आए, लेकिन यहां की जिंदगी का जवाब नहीं। सब अपनी मस्‍ती में मस्‍त। जीमण एक उत्‍सव है, जहां खाने से अधिक स्‍वाद के आनंद पर घण्‍टों चर्चा। मेले-मगरियों का तो बेसब्री से इंतजार रहता है, तब पूरा शहर ही खाली हो जाता है। कोई सेवा तो कोई दर्शन तो कोई मौज-मस्‍ती के लिए 60 किमी पैदल चलने को आतुर रहता है। शून्‍य से 48 डिग्री पारे के बीच जिंदगी हंसती और खिलखिलाती रहती है। इस अलमस्‍त जिंदगी को एक बाहर से आया परदेसी अपने अदांज में देख और महसूस कर सकता है। आज से सफर शुरू करते हैं रेत में बहते इस जीवन को जानने का...

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