बीकानेर में सत्या महाराज और मटूल सा की कड़ाही का दूध पीने का अलग ही आनंद है। यहां जितने लोग खाने-पीने के दीवाने हैं, उतनी दीवानगी शायद ही देश के अन्य शहरों में देखने को मिले। ऐसा भी नहीं है कि अन्य शहरों में कड़ाही का दूध नहीं मिलता हो, लेकिन यहां दूध का काम खासा कारोबार बन चुका है। भीतरी शहर में हर मोहल्ले में कड़ाही में दूध बेचने वाले मिलेंगे, लेकिन इन सबमें सत्या महाराज और मटूल सा के दूध का कोई मुकाबला नहीं है।
इनकी कड़ाही रात नौ बजे भट्टी पर चढ़ती है और मध्य रात होते-होते यह खाली होने लगती है। यदि आपको आने में देरी हुई तो वहां कड़ाही कुत्ते चाटते ही दिखाई देंगे। ये कड़ाही बीकानेर में साम्प्रदायिक सौहार्द्र का प्रतीक भी हैं। यहां न तो ऊंच-नीच और न ही किसी प्रकार का भेदभाव। सभी कौम के लोग बराबर खड़े होकर कुल्हड़ या गिलास में गर्म दूध को फूंक मारते मारते गटकते रहते हैं।
शाम को भरपेट भोजन करने के बाद दूध के शौकीन नौ बजते ही कड़ाही के इर्द-गिर्द मंडराने लगते हैं। जैसे ही दूध में उबाल आया गिलास और कुल्हड़ों की खडखड़ाहट पर लोगों की जेब से रुपए खनकने शुरू हो जाते हैं। शौकीनों की भीड़ को देखते हुए दूध विक्रेता भी पैसे लेने में कोई कोताही नहीं करता। उनका सीध ऊसूल है कि दूध वहीं पिएगा, जो रोकड़ा देगा। यानी ना कोई उधार और ना कोई उचंती। इन कड़ाहियों पर पहले उसी ग्राहक को दूध का कुल्हड़ दिया जाता है, जो नियमित ग्राहक होता है। वैसे अनजान ग्राहक कम ही होते हैं, मगर गाहे-बगाहे आ भी गए तो उन्हें दूध के लिए काफी देर इंतजार करना पड़ेगा।
प्रथम दृष्टया इन दुकानों को देखकर आपको कहीं ऐसा नहीं लगेगा कि इन पर ग्राहकों की कतार किसी राशन दुकान की तरह लगती होगी। ज्यादातर दुकानें बाजार बंद होने के बाद सजती हैं। न कोई किराया और न ही कोई सजावट। लोहे का चूल्हा, लकड़ा या गोबर के उपले, एक कड़ाही, पांच गिलास, कुछ कुल्हड़, दूध ठंडा करने वाले दो टोपिए और दूध के अनुपात में मीठे के लिए चीनी। यही इनका साजो-सामान है। सत्या महाराज सब्जी बाजार और मटूल सा बड़ा बाजार में अपनी दुकान लगाते है।
यह माना जाता है कि लोहे की कड़ाही में दूध जितना उबाल खाएगा, उतना ही दूध शौकीनों को पसंद आएगा। चाहे सर्दी हो या गर्मी या फिर बारिश का मौसम, इनकी दुकानों पर कोई असर नहीं पड़ता। ग्राहक भी दुकानदारों की तरह बारहमासी हैं। इन दुकानों की लोकप्रियता के लिए यह जुमला भी चलता है कि जिस भी नवविवाहित जोड़े ने सुहाग रात पर इनका दूध पीया तो उनका दाम्पत्य जीवन भी उतना मधुर और मलाईदार होगा। ऐसे जोड़ों के लिए मलाई और केसरयुक्त दूध की व्यवस्था की जाती है।
सर्दी के मौसम में इन दुकानों के आस-पास अजीब नजारा होता है। सर्दी से बचाव के लिए दूध के शौकीन भट्टी के नजदीक रहते हैं, उनके पास ही कुत्ते भी बसेरे जमा लेते हैं। सर्दी से बचने के लिए राख की गरमाहट पर कुत्ते आराम फरमाए रहते हैं। वैसे, इस शहर में कुत्तों के लिए पर्याप्त दया है। शायद ही बीकानेर जितने कुत्ते अन्य शहरों में ही मिले, क्योंकि यहां के लोगों की धार्मिक भावनाएं कुत्तों पर किसी तरह का अत्याचार के लिए इजाजत नहीं देती है। जब भी नगर निगम का दस्ता इन्हें पकड़ने आता है तो लोग कुत्तों को अपने घरों में छिपा लेते हैं। ऐसे में यहां कुत्तों की संख्या बेशुमार है। मीठे की किसी दुकान के आस-पास मंडराते कुत्तों को बुरा नहीं माना जाता।
आप जब भी राव बीकाजी के बसाए इस शहर में आए तो रात में इन कड़ाहों में उबल रहे दूध का आनंद अवश्य लें। यदि आप दूध के शौकीन नहीं हैं तो इन दुकानों का नजारा जरूर देखें।
ऐसा ही नजारा जोधपुर के भी भीतरी बाजारों में देखा जा सकता है,जयपुर में भी ऐसे ही गर्म दूध की कई थडियां रात्री में सज जाती है|
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